शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

खरीबात

क्योंकि हथियार डाल चुके हैं..

प्रमोद तिवारी

पंचायत चुनाव के प्रथम चरण से यह तय हो गया है कि कानपुर महानगर में अगर ट्रैफिक पुलिस पूरी तरह से हटा ली जाए, तो भी कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. शहर वैसे भी जाम से कराहता है और बिना ट्रैफिक पुलिस के भी जाम से ही कराहेगा. १२ अक्टूबर यानी चुनाव के अगले दिन शहर के सभी अखबारों में जाम की त्रासद तस्वीरें और कहानियां थीं. यह कहानियां शहर वैसे भी कहता रहता है और फिर पढ़ता रहता है. प्रधानमंत्री का अना याद करिए. तब तो दूसरे जिलों की भी पुलिस शहर में थी. क्या हुआ था... एक बच्चे की जान फंस गई थी जाम में और अंतत: कराहते-बिलखते शहर के साथ बेचाराा पूरा शहर देख बगैर ही दुनिया छोड़ गया. अगर जिला पुलिस-प्रशासन नहीं जान पाया है या उसे अभी भी उम्मीद है कि पुलिस से शहर के यातायात का कोई भला होने वाला है, तो वह पानी पर पत्थर की नींव डालने की सोच रहा है. एक किस्सा बताता हूं. स्थान- गुमटी गुरुद्वाास क्रासिंग. समय सुबह ११ बजे के आस-पास. मैं अस्सी फिट रोड से गुमटी बाजार की ओर अपनी कार से जा रहा था. गुमटी क्रासिंग पर गुरुद्वारे के ठीक सामने एक पक्की चौकी बनी है सभी को मालूम है. 'ट्रेनÓ का समय था. क्रासिंग बंद थी. मैं खड़ा हो गया ठीक चौकी के बगल में. चौकी के भीतर चार सिपाही और दो होम गार्ड थे. क्रासिंग बंद होने से जीटी रोड के दोनों ओर से आने वाले वाहन और अस्सी फिट रोड से गुमटी दिशा में जाने वाले वाहनों की पहले मैं... पहले मैं... के चक्कर में जाम लग गया.अब देखिए! चौकी के अंदर सिपाही-होमगार्ड जाम लगता देख रहे हैं, कोई फर्क उन पर नहीं पड़ रहा है. ट्रेन चली गई, क्रासिंग भी खुल गई. क्रासिंग खुलते ही खड़े वाहन अपनी-अपनी दिशा में थोड़ा सरके और फंसे जाम में और बुरी तरह फंस गये. हार्नों की कानफोड़ू 'चिल्ल-पोंÓ मच गई. उस दिन सूरज चटक निकला था. बरसात के बाद की चुटकी काटती धूप से सबका बुरा हाल... लेकिन चौकी में मौजूद ट्रैफिक और सिविल के सिपाही आराम से टांग हिलाते हुए अपनी बातों में मशगूल! मुझसे नहीं रहा गया..., मैं गाड़ी से उतर कर चौकी तक गया... चौकी में मुझे डंडाधारी रामलाल जी मिले.. रामलाल खाकीवर्दी में मुंह में मसाला भरे थे. मैंने उनसे कहा, 'ये आपकी खोपड़ी पर जाम लगा है दिखाई नहीं दे रहा है?Ó'रामलाल बोले, दिखाई दे रहा है. क्या करूं...Ó'जाम हटवाइये, और क्या करिए...Ó मैंने कहा. बह बोले, क्या मेरा ठेका है.Óमैंने कहा, ''अगर यह तुम्हारा ठेका नहीं है, तो किसका है?ÓÓवह बोले, 'देख नहीं रहे हैं इन लोगों को. ये सारे के सारे पढ़े-लिखे हैं. इन्हें नहीं मालूम ट्रैफिक नियम..?Óपढ़े-लिखे तो ये हैं, इन्हें पूरी सीआरपीसी और आईपीसी भी मालूम है. तो फिर तुम्हारा क्या काम?अभी तक उन्हें यह नहीं मालूम था कि ये कौन आदमी है.. मेरे इस जवाब से वह थोड़ा गंभीर हुए. मुझे गुस्सा आ गया. मैंने कहा, चौराहे पर खड़े हो, भीड़ के सामने पटर-पटर कर रहे हो शर्म नहीं आ रही है... एक आदमी का काम है... दो मिनट लगेंगे जाम हटाने में..?रामलाल बोले, ''अच्छा चलिए मैं चलता हूं आपके साथ. हटाइये जाम.Ó और दोस्तों! मैं रामलाल के साथ जाम हटाने बीच चौराहे पिल पड़ा. मेरे पिलते ही दो नवजवान और साथ आ गये. एक कोने में मैं खड़ा हो गया, दो कोने उन अनजान युवाओं ने पकड़ लिये. रामलाल भी डंडा लहराते हुए रास्ता बनाने में सक्रिय हुए. आपकों बतायें, रास्ता साफ होने में घड़ी देखकर पांच मिनट भी नहीं लगे. वहां जाम का कोई कारण ही नहीं था. केवल चौराहे पर चारों दिशा से आने वाले वाहनों ने आपस में थूथन जोड़ रखे थे और सबके पीछे दस-दस, बीस-बीस वाहन थे, बस, बाकी चारों दिशाओं की सड़कें साफ खाली पड़ी थीं. जाम साफ होने के बाद मैंने रामलाल से कहा अब बताइये. रामलाल जल-भुनकर राख हो गये थे. इसके आगे भी कहने को बहुत कुछ है, लेकिन फिलहाल यह उदाहरण काफी है इतना बताने के लियेे कि अगर ट्रैफिक पुलिस व सिपाही चौराहों पर हों भी, तब भी जाम से निजात संभव नहीं है, क्योंकि वे अपने हथियार डाल चुके हैं.े

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