शनिवार, 27 नवंबर 2010

आइना

राहुल बनें नीतीश..!

उत्तर प्रदेश के पास कोई नीतीश कुमार नहीं है. अगर व्यक्ति केन्द्रित आशा को तलाशें तो एक नाम राहुल गांधी का सामने आता है. लेकिन राहुल उत्तर प्रदेश के लिए खुद को नाकाफी मानते होंगे. उन्हें अपने खानदानी रसूक के पैमाने पर यह प्रांत और मुख्यमंत्री की कुर्सी शायद कम मालूम पड़ती होगी. अगर ऐसा नहीं है तो नीतीश कुमार की सलाह कि राहुल पीएम बनने के पहले किसी प्रदेश के सीएम बन जाएं. कांग्रेसियों को फ्रांस की तरह नहीं लगती. जो बात नीतीश ने चुनावी अभियान में बात की बात में कही उसमें बड़ा दम है. उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की सक्रियता से जबरदस्त हलचल है. राहुल प्रदेश में विकास की राजनीति का वादा करते घूम भी रहे हैं. लेकिन खुद प्रदेश के सिंहासन पर विराजकर वादा पूरा करने का दम नहीं दिखा रहे. काश! राहुल खुद को पांच वर्ष के लिए उत्तर प्रदेश के हवाले कर दें तो प्रदेश ही नहीं देश बदल जाये..। मायावती और मुलायम सिंह यादव के मुकाबले कांग्रेस के पास कोई चमकदार चेहरा नहीं है. प्रदेश की कुल कांग्रेस की राजनीति राहुल गांधी के पीछे-पीछे दुम हिलाती ही दिखाई दे रही है. ऐसे में राहुल अगर यूपी के 'सीएमÓ बनने की सोच लें तो बिहार के परिणामों की तरह उत्तर प्रदेश में भी जाति, धर्म और फिजूल की वैमनस्य बढ़ाती जुमलेबाजी को विराम मिल सकता है. लेकिन कांग्रेस और उसके राजकुमार से ऐसी उम्मीद करना शायद बेमानी है. वैसे बिहार चुनाव ने कांग्रेस को आइना दिखा दिया है. बिहार चुनाव ने कांग्रेस को औकात बता दी. जिन विधानसभा हल्कों में राहुल की मीटिंग हुई वहां कांग्रेस चुनाव हार गई. बिहार चुनाव में कांग्रेस के पास कोई एजेंडा नहीं था. लालू के एजेंडे को जनता पहले ही 15 साल देख चुकी थी. अगर कांग्रेस कोई एजेंडा देती तो जनता एक बार विचार करती. बिना सोचे समझे बिहार की जनता को सोनिया और राहुल समझाते रहे. जैसे की उनकी नजर में बिहारी एकदम बेवकूफ हंै. उनकी सारी बातों को आंख मूंद कर मान लेंगे. कांग्रेस ने बिहार चुनावों में आंध्र प्रदेश के विकास का उदाहरण दिया. कहा बिहार का कुछ विकास नहीं हुआ आंध्र के मुकाबले. पांच साल में नितीश ने कुछ नहीं किया. लेकिन ये कहते हुए वे भूल गए कि पहले चालीस साल तक कांग्रेस का ही राज बिहार में रहा, जिसमें जातिवाद समेत कई खामियां बिहार की राजनीति को प्रभावित करती रही. उस चालीस साल में बिजली और सड़क जैसे बुनियादी कामों पर कांग्रेस ने कोई ध्यान नहीं दिया.बिहार की जनता को भय था कि कहीं लालू का जंगल राज न लौट आए. साथ ही भय यह भी था कि कांग्रेस दुबारा जंगल राज को सहयोग देगी. अगर तीस से चालीस सीट आ गई तो कांग्रेस लालू से मिलेगी. पहले भी लालू यादव से कांग्रेस सहयोग करती रही है. यूपीए-1 की सरकार पांच साल तक लालू ने चलायी. कांग्रेस ने खुद कहा कि वे सरकार नहीं बनाने जा रही है. फिर आखिर जब वे सरकार ही नहीं बना रहे है तो कांग्रेस को जनता क्यों वोट दे. कांग्रेस ने चुनावों की रैलियों में संकेत दिया कि वे चुनाव सिर्फ वोटकटवा बनने के लिए लड़ रहे थे. हर पार्टी के गुंडा बदमाश कांग्रेस में जाकर टिकट पा गए. उन्हें जनता ने नकार दिया. कई लोग कांग्रेस से टिकट इसलिए लेकर चुनाव लड़े कि कांग्रेस चुनाव लडऩे के लिए पैसे दे रही थी. पप्पू यादव और क्या आनंद मोहन जैसे अपराधियों की पत्नियों को टिकट दिया गया. अखिलेश सिंह और ललन सिंह जैसे भूमिहार नेताओं को भूमिहारों ने ही धूल चटा दी.कांगे्रस उत्तर प्रदेश में 'जदयूÓ की तरह आम जनता का विश्वास प्राप्त कर सकती है. लेकिन इसके लिए राहुल को राज कुंअर बनकर नहीं नीतीश की तरह लोकसेवक बनकर सामने आना होगा. इसमें क्या संदेह कि मायावती को सर्वाधिक खतरा राहुल से ही जान पड़ता है. मुसलमान, यादव गठजोड़ के दिन वैसे ही लद चुके हैं. फिर भी मुलायम सिंह की ताकत को खारिज करना बेमानी है. राहुल और कांग्रेस अगर २०१० में पूरी ताकत से उत्तर प्रदेश में विकास का एजेंडा लेकर नहीं उतरे तो अधकचरी आशा और विश्वास परिवर्तन को तैयार बैठे जनमानस को छितरा कर रख देगा और अगले पांच साल तक हमें बीते बिहार की तरह देश की मुख्य धारा से कटकर चंगेजी राजनीति को भुगतना पड़ेगा.1 हेलो संवाददाता

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