शनिवार, 20 नवंबर 2010

चौथा कोना
प्रेम प्रकाश का तबादला निकला दिव्या का इंसाफ?
डीआईजी प्रेम प्रकाश के गायब होते ही शहर के अखबारों से दिव्या मांगे न्याय का शोर भी गया. हिन्दुस्तान और आई-नेक्स्ट अखबार को यह ध्यान रखना होगा कि 'फालोअपÓ केवल अखबारों में ही नहीं चलता आम पाठ में भी चलता है. इसीलिए अगर वाकई दिव्या प्रकरण में 'सीबीसीआईडीÓ की जांच से सुपरिणाम हासिल करने हैं तो जिस तरह से प्रेम प्रकाश के तबादले से पहले तक इन दोनों अखबारों ने अपनी विशिष्ट मुहिम चला रखी थी उसे आगे भी जारी रखें. पिछले कुछ दिनों से ये दोनों अखबार दिव्या की मां का 'बैंक एकाउण्ट और उसमें सहायता राशि जमा करने, कराने की जानकारी भी नहीं दे रहे हैं. मीडिया पर विशेष रूप से हिन्दुस्तान और आई-नेक्स्ट के बारे में यह चर्चा भी आम रही कि दोनों अखबार 'डीआईजीÓ के व्यक्तिगत कोप की प्रतिक्रिया में हमलावर थे. इस पर दोनों अखबारों को आपत्ति रही. लेकिन जब तबादले को मुहिम की सफलता के रूप में विज्ञापित किया गया तो इसका अर्थ क्या निकला? हिन्दुस्तान ने साफ लिखा कि प्रेम प्रकाश का तबादला उसकी जीत है. जबकि प्रेम प्रकाश के तबादले में हिन्दुस्तान की जीत नहीं है. हिन्दुस्तान की जीत दिव्या के असली बलात्कारी को सींखचों के पीछे जाने तक अब पल-पल की जानकारी देने में है. दोस्तों, अखबार न पुलिस है, न ही न्यायालय लेकिन यह पुलिस और न्यायालय का जबरदस्त दोस्त हो सकता है. वह भी तब जब तीनों अपने-अपने छोर पर सही ठंग से काम करें. जब पुलिस लीपापोती करेगी और मीडिया हंगामा तो न्याय मुश्कल हो ही जायेगी. मीडिया की मजबूरी है कि उसके कमान में 'हंगामाÓ नामक तीर ही अमोध शास्त्र है. यही उसकी ताकत है. इसमें क्या संदेह कि अगर मीडिया ने हंगामा न खड़ा किया होता तो आज की तारीख में 'मुन्नाÓ दिव्या के बलात्कार का गुनहगार स्थापित हो गया होता. जबकि अब तक की जांच से ऐसा साबित होता नहीं लगता. पुलिस निकम्मी हो चुकी है, बेईमान हो चुकी है, नैतिकता खो चुकी है. क्योंकि रिश्वत देकर वर्दी पाने वाले हमारी सुरक्षा में तैनात जो होने लगे हैं. रही बात मीडिया की तो उसके दामन पर भी पैसा लेकर विधिवत खबरें छापने का एक ऐसा कलंक लग चुका है जिसके बाद किसी भी तरह की हरिशचंदी और पृथ्वीराज चौहानी समझ में नहीं आती.1 प्रमोद तिवारी

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