शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

देश का दर्पण

प्रसंगवश-प्रमोद तिवारी

खेलों के नतीजे किसी भी देश के तन और मन का दर्पण होते हैं. देश का तन होता है देश के लोग, देश का मन होता है देश की नीतियां. कामनवेल्थ गेम्स में भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बताता है कि देश के लोग और देश की नीतियां दोनों इस दौर में अब तक की सर्वश्रेष्ठ उन्नत दिशा की ओर हैं. आप गौर करें तो पायेंगे कि दूनिया के वे सारे देश जो विकसित हैं, अपेक्षाकृत अ-भ्रष्ट हैं, जहां का नागरिक जीवन चैन से व संतोषप्रद है, वे जब भी खेल की स्पर्धाओं में उतरते हैं तो पदक तालिका उनके लिये शीर्ष के स्थानों के लिए स्वागत करती दिखाई पड़ती है. इस दृष्टि से कामनवेल्थ गेम में भारत का ३८ स्वर्ण पदकों का जीतना बताता है कि इस देश में सब कुछ पहले जैसा नहीं है, बहुत तेजी से बेहतर हो रहा है. अगर भारत के ३८ स्वर्ण पदकों की चमक में भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था समीक्षा की जाये तो देश की सही ताजा तस्वीर सामने प्रकट हो सकती है. जैसे कि ३८ तमगों में महिलाओं की भागीदारी.... महिलाओं ने लगभग एक तिहाई से भी अधिक सोने के तमगों पर कब्जा किया है. यह केवल खेलों में महिलाओं का बढ़ता रुतबा नहीं है बल्कि यह रुतबा है नये भारत में तेजी से आगे बढ़ती महिलाओं का. ऐसे ही स्पर्धा और खिलाडिय़ों के गृह प्रान्त और जनपद पर दृष्टि डालें तो पता चलेगा कि खेल वास्तव में किस तरह लोक जीवन और लोक व्यवस्था का दर्पण होते हैं. कामनवेल्थ गेम्स में अगर केवल हरियाणा के खिलाडिय़ों के पदकों को जोड़ दिया जाये तो ताजा कामनवेल्थ गेम की पदक तालिका में उसे छठा स्थान प्राप्त हो सकता है. एक तरह से एक देश भर की ताकत दिखाई है अकेले हरियााणा प्रान्त ने. खेल का यह नतीजा हरियाणा सरकार और वहां की खेल नीतियों का आईना नहीं है क्या? हां, निश्चित ही देश में तेजी से आगे बढ़ रहे प्रान्तों में हरियाणा का भी नाम है. ऐसे ही अगर यह देखें कि भारत ने किन-किन खेलों में तमगे हासिल किये तो एक बात और निकल कर आती है कि वर्तमान सफलता टीमों के बजाय खिलाडिय़ों के निजी दम-खम पर ज्यादा टिकी हुई है. निशानेबाजी, पहलवानी, मुक्केबाजी येे प्रमुख स्पर्धाएं हैं जिनमें भारत ने सर्वाधिक पदक हासिल किये. ये वे स्पर्धाएं हैं जहां संसाधनों के टोटे और प्रतिभा से छेड़छाड़ के मौके बहुत ज्यादा नहीं हो सकते. चूंकि मीडिया अब प्रतिभाओं को छुपने नहीं देता और खेल संघों की 'इंट्रीÓ में मनमानी चल नहीं पाती. जहां तक टीम स्पर्धाओं का प्रश्न है तो अपनी स्थिति देख लें. हॉकी में सोना चूके कि नहीं... स्वीमिंग में कुछ नहीं मिला. क्योंकि इस स्पर्धा में संसाधनों का सर्वाधिक महत्व होता है. एक बात और.. अगर अ-भ्रष्ट देश ही खेलों में वर्चस्व बनाते हैं तो भारत में तमगों का टोटा होना चाहिए. तो मित्रों हमने खेलों में भ्रष्टाचार का माप कोटा आयोजकों से पूरा करा तो दिया. अगर खेल नियोजक, आयोजक और खेल संघों के आका अ-भ्रष्ट हो जाएं तो पहला स्थान आस्ट्रेलिया का नहीं भारत का हो.. वह भी कामनवेल्थ गेम में नहीं, एशियाई और ओलंपिक खेलों में भी. इसलिए अंत में यह कहकर अपनी बात समाप्त करता हूं कि कामनवेल्थ में खिलाड़ी जीते हैं. खेल नहीं. खेल तो चारों खानों चित्त ही मिला. आयोजन से पहले भी और आयोजन के दौरान भी. डिस्कस थ्रो और महिलाओं का ४ गुणा ४०० मीटर की रिले दौड़ तथा बैडमिंटन व टेनिस का एकल खिलाब वास्तव में देश की खेल शिराओं में स्वर्णिम सिहरन पैदा करने वाला रहा. जय हो....खिलाडिय़ों की.. जय हो.. भारत की.1

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