शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

प्रथम पुरुष
क्रमिक विकास में सहायक हैं कीटाणु
डा. रमेश सिकरोरिया
आज जो हम आपको बताने जा रहे है. उस पर आप विश्वास नहीं करेगें आप तो यहां तक कहेंगे कि यह सब बकवास है. परन्तु यह सब विज्ञान की खोज पर आधारित है और आपके हित में है कि इस पर विश्वास करें और अपनी जीवन शैली को स्वस्थ बनाने में उपयोग करें. क्रमिक विकास का आधार है जिन्दा रहना और नयी पीढ़ी को जन्म देना. हमारी उद्भव सम्बन्धी या जन्म विषयक शक्ति इसीलिये हम किस वातावरण (जलवायु) में रह रहे हंै, हम क्या खा रहे हैं, हमारे रहने का क्या तरीका है के साथ ऐसा सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश करता रहता है ताकि हम जिन्दा रहें और अपने बच्चों को पैदा कर सकें. भोजन के साथ हम उन कीटाणुओं को भी खाते हैं जो हमारे खाने वाले पदार्थो पर जीवित है अतएव उनका क्रमिक विकास का भी आधार हमारी तरह जिन्दा रहना और अपनी नयी पीढ़ी को जन्म देना है . यह क्रम लाखों और अरबों वर्ष से चल रहा है और चलता रहेगा. प्रत्येक जीवित वस्तु चाहे वह कीटाणु हो, प्रोटोजोआ हो, शेर हो, चीता हो, भालू हो या हमारा भाई हो, बहन हो, यह कर रहा है क्यों कि यह उनकी मजबूरी है अन्यथा वे मर जायेगे वंश नहीं चला पायेंगे. हमारे शरीर में लगभग १००० प्रकार के कीटाणु जिनकी संख्या १०० लाख से १००० लाख है और जिनका वजन तीन पाउन्ड है रह रहे हैं. उनकी संख्या हमारे जींस की संख्या की सौ गुनी है. परन्तु सभी कीटाणु हानिकारक नहीं हैं, क्रमिक विकास में इन कीटाणुओं से हमको और इनको हम से लाभ भी हो रहा है. हमारी संवेदना से हमारी आकृति तक हमारे रक्त की कैमिस्ट्री में इन कीटाणुओं द्वारा उतपन्न बीमारियों से बचने के लिये निरन्तर प्रयास होता रहता है. हमारी सेक्स का आकर्षण भी बीमारियों से सम्बन्ध रखता है. इसका असर हमारे या हमारे बच्चों की संक्रामकता विरोध शक्ति पर भी पीड़ता है. अधिकतर यह कीटाणु हमारी पाचन नली में पाये जाते हैं जो हमारे खाद्य पदार्थों को पचा कर उनसे ऊर्जा पैदा करने में मदद करते हैं. वे हमारी कोशिकाओं को बनाने में मदद करते है और कीटाणुओं जो एक ओर गम्भीर बीमारी पैदा करते है तो दूसरी ओर हमें दूसरी बीमारी से बचने की शक्ति भी देते है. हीमोक्रोमैटोसिस एक बीमारी है जिसमें शरीर की क्षमता लोहा रखने की बढ़ जाती है. क्रमिक विकास से स्वाभाविकत: वे जीन हमारे बच्चों में जाते हैं जो लाभदायक हैं और हानिकारक जीन नहीं जाते हैं. इसी क्रिया से हम जीवित रहते है और जन्म देते है. इस क्रिया में कीटाणुओं का बड़ा योगदान है उनसे बचने के लिये हमारे जींस में बदलाव आता है. इसी प्रकार की क्रिया की कीटाणुओं का बड़ा योग दान है जिनकी क्रिया से हम जीवित रहते हैं, उनसे बचने के लिये हमारे जींस में बदलाव आता है. इसी प्रकार की क्रिया कीटाणुओं में भी चलती है, उनमें भी जिन्दा रहने और जन्म देने की क्षमता रहने के लिए बदलाव आता रहता है तमाम दवाओं से नष्ट होने से बचने के लिए उनमें बदलाव आता है. एन्टीबायोटिक्स खास तौर पर पैनीसलीन की क्षमता पर विराम लगना इसका प्रमाण है. अधिक लोहा हमारे शरीर के कीटाणुओंका खाना है और उसकी अधिक मात्रा में पनपते है. देखा गया है कि अनीमियासे पीडि़त लोगों में मलेरिया टी.वी बू्रोसीलेसिस और अन्य संक्रमण कम होते हैं.रोग को कीटाणु तीन प्रकार से फैलाते है-एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति की निकटता से वायु के द्वारा या शारीरिक सम्पर्क से जैसे कि साधारण जुकाम, चेचक या यौन क्रिया द्वारा फैलाने वाली बीमारियां. हम अपने बचाव के लिए एक दूसरे से दूरियां बढ़ाते है कीटाणु अपनी संक्रमकता रखने के लिए ऐसे लक्षण या आदत पैदा करते हैं कि हमारा यह उपाय कारगर न हो, जैसे साधारण जुकाम में छींक आना और यौन क्रिया की इच्छा का बढऩा. किसी अन्य जीव के माध्यम से रोग फैलाना जैसे कि मच्छर मक्खी या फली द्वारा मलेरिया अफ्रीका की स्लीपिंग सिकनस, टाइफस इत्यादि हम अपना बचाव इन जीवों के काटने से या सम्पर्क में आने से बचाव करते हैं मच्छरदानी लगा कर या इनसे दूर रहकर. हम लोग ये गांव तक छोड़ देते हैं चूहों को मरते देख कर अपने बीमार प्रियजनों को भी मरने के लिए छोड़ देता है. कीटाणु अपनी क्षमता बनाये रखने के लिए हमे इतना कमजोर बना देता है कि हम इधर-उधर भाग न जाये और वह हमारे शरीर पर हमला कर सकें. तीसरा हमारे पानी खाना और वायु को दूषित करके जैसे कि कौलरा, टाइफाइड, हिपेटाइटिसर पीला पन जौन्डिस हम अपना बचाव खाद्य पदार्थो पानी और वायु को दूषित होने के उपाय करते हैं कीटाणु अपनी क्षमता रखने के लिए इनको दूषित करने की आदत डालता है जैसे कि बारबार दस्त होने के लिए पानी के श्रोतो के पास जाना मक्खी द्वारा खाने पर बैठना अन्य जीवों द्वारा वायु का भी दूषित होना.1

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