शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

नारद डाट काम
आपरेशन रावण
कमलेश त्रिपाठी
इन दिनों शहर में रावण की तलाश जारी है. पत्रकार, पुलिस और शहर के भलेमानुष सब इसी पुनीत कार्य में लगे है. पता नहीं ये रावण ससुरा है क्या आइटम हर साल फुँकता है और फिर खड़ा हो जाता है. पत्रकारों समेत तमाम लोगों का मानना है कि पुलिस ही असली रावण है. मुझे उनका ये मानना अनेक कारणों से हजम नहीं हो रहा है. शास्त्रों के मुताबिक जब विभीषण ने पहली बार राम को रावण दर्शन करवाये थे तो राम ने कहा था भव्य! क्या व्यक्तित्व है. अपनी पुलिस तो ऐसी है नहीं, इसलिए उसे रावण मानना उचित नहीं है. दूसरा रावण मर्द था और अभी तक बड़े बड़े विद्वान पुलिस का लिंग नहीं तय कर पाये हैं. पुलिस हमेशा करती है करता नहीं. ऐसे में पुलिस को स्त्रीलिंग माना जा सकता है. ऐसे में स्त्री रावण कभी नहीं हो सकती. लोग तर्क देते हैं कि पुलिस ने ये किया, वो किया, इसको मारा, उसको पीटा और फलां को गलत जेल भेज दिया. ये काम स्त्री कभी नहीं कर सकती, ये तो निखालिस मर्दों का काम है. आप लोगों की सोच का फर्क है. आपको मंथरा की याद नहीं है क्या आप राखी सावंत को भी भूल गए हैं. पहले वाली रामराज्य में गदर काटे रही और बाद वाली अब काटे है. इस गणित के अनुसार पुलिस को स्त्रीलिंग मानने में लोगों को संकोच नहीं होना चाहिए. अब यहाँ एक बात विचारणीय है कि किसी स्त्री के साथ आपका क्या आचरण होना चाहिए. खासतौर पर जब वो निर्लज्ज हो चुकी हो. सयाने कह गये है कि ऐसी स्त्री से दूरी बनाए रखना ही अक्लमंदी है. पुलिस के वाहनों में मैंने हमेशा लिखा देखा है कि कृपया उचित दूरी बनाए रखें. इस गूढ़ अर्थ को जो नहीं समझेगा वो हमेशा परेशान रहेगा. यहाँ एक बात और है कि मर्द को मर्द से लडऩा चाहिए औरतों से क्या लडऩा. फिर धरना प्रदर्शन से उनका कुछ बिगडऩे वाला नहीं है. इनका सही और सटीक इलाज शहर के काले कोट वाले करते हैं. दरअसल ये उन्हें उन्हीं की भाषा में समझाते हैं और ये समझ जाते हैं कलम और डंडे का क्या मेल? एक डंडे से सैकड़ों कलमें टूट सकती हैं लेकिन उनकी आवाज दब नहीं सकती. शहर में धारा 144 लगी हुई है. यदि आपके परिवार में पाँच से ज्यादा सदस्य हैं तो एक आध को बाहर रिश्तेदारी में भेज दीजिए नहीं तो शहर की स्त्री पुलिस आपको रावण बना देगी.1

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