शनिवार, 2 अप्रैल 2011

मिड डे मील की सेवा का मेवा

एक तरफ सरकार गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रही है कि बच्चे देश की धरोहर हैं, देश का भविष्य हैं। हमें अपने इन भविष्य के मेधावियों को हरसम्भव ख्याल रखना चाहिये। सरकार केवल यह कह ही नहीं रही है बल्कि कर भी रही है। हर वर्ष देश भर के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले लाखों बच्चों को बेहतर मिडडे मील उपलब्ध कराने के लिये करोड़ों रूपये खर्च किये जाते हैं। विभाग बने हैं अधिकारी तैनात हैं लेकिन इस सबके बावजूद हमारे कल के भविष्य को आज भी इस मिडडे मील का सड़ा और अधपका खाना ही खाने को मिल रहा है ऐसा खाना जिसे शायद जानवर भी न खायें।
कानपुर के जिलाधिकारी डा. हरिओम ने नौ मार्च को  स्वयं  अपनी पूरी टीम के साथ जाकर कानपुर के प्राथमिक  स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील उपलब्ध कराने का जिम्मा उठाये छह स्वयंसेवी संगठनों का दौरा किया था। उनके कानपुर पद-भार ग्रहण करने के बाद इस और उनका ध्यान आकृष्ट कराया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप यह कार्यवाही की गयी थी। यह  शिकायत च्फेस-बुकज् के माध्यम से की गयी थी। जिलाधिकारी  को इन संस्थाओं में विभिन्न प्रकार की कमियां प्राप्त हुयीं। भोजन में पोषकता की कमी तो थी ही साफ़-सफाई और निरंतर तैयार मध्यान्ह भोजन की आपूर्ति में भी कमियां उजागर हुयी थीं। कल यानी 31 मार्च को कानपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश कुमार पाण्डेय ने बताया वल्र्ड वेलफेयर सोसाइटी, अरुणोदय ग्रामोद्योग, बापू ग्राम विकास संस्थान और युवा ग्राम विकास समिति को इस काम से हटा दिया गया है। उन्होंने बताया वल्र्ड वेलफेयर सोसाइटी प्रेम नगर के मदरसों और सरकारी सहायता प्राप्त केन्द्रों को, अरुणोदय ग्रामोद्योग प्रेम नगर सी.आर.सी. के परिषदीय विद्यालयों को, बापू ग्राम विकास संस्थान हरजेंदर नगर सी.आर.सी. के स्कूलों को मिड-डे मील उपलब्ध कराती थीं। उन्होंने यह भी सूचना दी, जब तक नयी संस्थाएं तय नहीं होती, तब तक सी.आर.सी. की अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं को जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। परन्तु प्रशासनिक हलकों में इन सभी पका हुआ खाद्यान उपलब्ध कराने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं में से प्रमुख संस्था च्सेवाज् को क्लीन-चिट दिया जाना अभी भी  संदिग्ध माना जा रहा है  , जो की गयी प्रशासनिक कार्यवाही को नाकाफी मानने के लिए पर्याप्त है । कारण ये है ,जिस प्रेम नगर सी.आर.सी. के प्राथमिक स्कूलों के बच्चों के लिए मिड-डे मील उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी में गड$़बड़ी मानकर जिन अन्य  स्वयंसेवी संस्थाओं पर दंडात्मक कार्यवाही की गयी है उन्हें ये भोजन उपलब्ध करवाने का  च्किचेनज्  इसी च्सेवाज् संस्था के द्वारा संचालित होता है। ऐसे में मुख्य रूप से  इस च्भ्रष्टाचारज् के वट-वृक्ष की जड़ पर प्रहार करने की बजाय  दिनों-दिन विशाल होते जा रहे इस वट-वृक्ष की दो चार कमजोर टहनियों और सूखे पत्तों को झकझोर देने मात्र से ही कुछ नहीं होने वाला है। अगर सही मायने में इस भ्रष्टाचारी वृक्ष को जड़ से खत्म करने के लिये घड़ों म_ा डालने का सार्थक और जुनूनी प्रयास करने से ही कुछ भला हो सकता है।
 दूसरी तरफ बी. एस. ए. कार्यालय के सूत्र बताते हैं इस च्सेवाज्संस्था  को कानपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश कुमार पाण्डेय सहित कई आला अधिकारिओं का संरक्षण प्राप्त है। ये संस्था इसी प्रकार से पहले भी एक बार काली सूची में डाल दी गयी थी। परन्तु इन्ही अधिकारी महोदय की विशेष कृपा से इसने अपने रूप का विस्तार करके अन्य चार नामों से इन काम को ले लिया। पांच नाम से शहर के बहुत बड़े भाग में करोड़ों का हेर-फेर करने वाली इस संस्था के जिन चार रूपों की प्रतिबंधित किया गया है,उन्हें यदि दण्डित भी किया जाए तो प्रशासन की सक्रियता का कोई असर हो। अन्यथा अब तो इन सभी का काम तो सरकारी अधिकारिओं के द्वारा घोषित रूप से च्सेवाज् को दे दिया गया है। इस दंड के माध्यम से काम और दाम अब सीधे रूप से च्सेवाज् के पास ही सुनिश्चित हो गया है। दबी जुबान में एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया  जिलाधिकारी के छापे के एक माह बाद की गयी इस कार्यवाही में ही प्रशासन की मंशा और नीयत पर संदेह स्पष्ट होता है। वैसे भी देर से दिया गया न्याय अन्याय ही कहलाता है। और अन्याय जब बेसिक शिक्षा अधिकारी के संरक्षण में हो तो क्या कहने ?
शिक्षक नेताओं का मानना है , ऐसा लगता नही जिलाधिकारी इस पूरे मामले से अनजान होंगे।अब देखना है यह है च्सेवाज् को उनकी की गयी इस कार्यवाही का कब तक लाभ मिलता है। उनका कहना है  कहीं च्सेवाज् ने सब-कुछ सेट तो नहीं कर लिया , यदि ऐसा है तो भी और नहीं है तो भी , सरकारी जमीन पर अपना खाना बनाने का कारखाना स्थापित किये च्सेवाज् और इसी शहर में मिड-डे मील घरेलू सिलेंडरों से बनवाने वाली क्लीन-चिट पायी  शेष दूसरी संस्था का साफ़ सुरक्षित बच जाना मामले को संदिग्ध तो बनाता ही है। दूसरी तरफ इन दोषी संस्थाओं पर कानूनी कार्यवाही न किया जाना भी क़ानून के लंबे पर कमजोर हाथों का आभास दिलाता है।अब देखना ये है जिलाधिकारी डा. हरिओम क्या निर्णय लेते हैं और च्सेवाज् कब तक खैर मनाती है। 1 
अरविन्द त्रिपाठी
 (लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

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