रविवार, 10 अप्रैल 2011

चौथा कोना

अन्ना हजारे के समर्थन में चौथा कोना का धरना
गणेश शंकर विद्यार्थी की कर्मभूमि रहे कानपुर में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे के समर्थन में पत्रकारों का धरना आयोजित हुआ। इस धरने को च्चौथा कोनाज् ने आयोजित किया था। नवीन मार्केट के शिक्षक पार्क के इस धरने में कानपुर के सभी अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों और छायाकारों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। धरने का नेतृत्व शहर के जाने माने  कवि एवं  पत्रकार प्रमोद तिवारी जी ने किया। धरने के मध्य अपने संक्षिप्त उद्बोधन में प्रमोद जी ने आपातकाल के दिनों की याद दिलाते हुए नयी पीढ़ी के पत्रकारों से कहा कवि  दुष्यंत कुमार ने जयप्रकाश नारायण को जेहन में रख कर एक शेर कहा था । एक बूढ़ा आदमी है इस मुल्क में या यूँ कहो कि इस अँधेरी कोठरी में एक रोशनदान हैं । आज यही पंक्तियाँ बुजुर्ग युवा समाजसेवी अन्ना हजारे के किरदार को भी उजागर करती हैं ।  कानपुर के सभी सजग पत्रकारों से आग्रह है कि अन्ना हजारे द्वारा जन लोकपाल बिल को लागू कराये जाने की मांग को लेकर किये जा रहे आमरण अनशन को समर्थन देने के लिए चौथा कोना के एक दिवसीय धरने में शामिल होकर अपनी ईमानदार भूमिका का संकल्प दोहराए और कत्र्तव्य पथ पर आगे बढे!  उन्होंने स्वरचित पक्तियां  भी कहीं.
उठा लाओ कही से भी उजाले की किरण कोए
अंधेरो की नहीं अब धमकियाँ बर्दाश्त होती हैं !
उजाले के लिए जलते हैं जो दीपक खुले दिल से,
तजुर्बा है मेरा उनके हवाएं साथ होती है ।
शहर में पत्रकारों और समाजसेविओं  के  मध्य चर्चित रहे इस धरने में  वर्तमान प्रेस क्लब के वरिष्ठ मंत्री सरस बाजपेयी शामिल रहे। इसी प्रकार कानपुर के राष्ट्रीय सहारा के स्थानीय सम्पादक नवोदित जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी।  नयी दुनिया साप्ताहिक समाचार पत्र के ब्यूरो चीफ कमलेश त्रिपाठी और राष्ट्र.भूमि के संवाददाता  प्रवीन शुक्ला भी उपस्थित रहे। लगभग एक सौ पच्चीस से अधिक पत्रकारों ने इस धरने में भाग लियाण्
यद्यपि इस कार्यक्रम की सूचना कानपुर के सभी बड़े अखबारों को पूर्व में दे दी गयी थी, किन्तु अखबारी व्यस्तता और अन्य कारणों से उपस्थित न हो सके लोगों अपनी असमर्थता को स्पष्ट किया जो इस धरने के महान उद्देश्य के लिए सफलता की बात कही। जैसा कि सर्वविदित है कि कानपुर प्रेस क्लब का चुनाव विगत सात सालों से नहीं हुआ है और इस संस्था में तमाम गड़बडिय़ा व्याप्त हैं। इस समस्या पर भी इस धरने में दबी जबान से बात शुरू हुयी जो अंतत: मुखर हो गयी। पत्रकारों और छायाकारों में इस संस्था के चुनाव न करवाने पर रोष है, जो अन्ना हजारे के लोकपाल बिल को लागू करवाने के माध्यम से उजागर हो गया। किन्तु प्रमोद तिवारी सहित वरिष्ठ पत्रकरों ने इस के लिए अगला संघर्ष शुरू करने के लिए उनके मध्य नेतृत्व तैयार करने के लिए रास्ता तलाशने का मार्ग दिखाया।1
अरविन्द त्रिपाठी
( लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं)

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