शनिवार, 2 अप्रैल 2011

प्रथम पुरुष

नये जमाने के हिसाब से आवश्यक हैं कानून संशोधन 

हम मृत्यु से डरते हैं क्यों? क्योंकि हमको भुला दिया जायेगा। हमारे प्रियजन, संगी-साथी, समाज हमें भुला देगा इसीलिये हम मरने से डरते हैं। हम चाहते हैं कि हमें हमेशा याद रक्खा जाये। क्या यह सम्भव है यदि सभी लोग सभी को हमेशा याद रक्खें तो मस्तिष्क तो इन यादों से फट जायेगा। उसके पास और कुछ करने की जगह ही नहीं रहेगी। यह अस्वाभाविक है फिर भी हम यह आशा करते हैं। हमने श्री राम श्री कृष्ण के चरित्र निर्माण किये उनसे असाधारण कार्य कराये उनको अमरत्व दिया परन्तु उन्हें भगवान कहा मनुष्य नहीं। हम मशहूर होना चाहते हैं हम स्मारक बनवाते हैं अपनी याद को कायम करने को हम  ऐसा क्यों चाहते हैं मेरी  समझ में तो यह एक एहं है। अपने को श्रेष्ठ समझने का सच तो यह है कि आप ऐसा कार्य करें (दूसरों के लिये समाज के लिये) जिन्हें याद रक्खा जाये। उन कार्यों को आपको या आपके नाम को नहीं परन्तु हो रहा है उल्टा। महापुरुषों के नाम को याद रक्खा जा रहा है उनके कार्यों को नहीं। अतएव मृत्यु के जरिये नहीं वह तो एक दिन आनी ही है। इस जीवन में ऐसे कार्य करें जिन्हें हमेशा याद रक्खा जाये। हमको अवसर मिला है कि समाज हमें याद रक्खे। अच्छे विचार अच्छे कार्य कभी नहीं मरते। स्मारक, मन्दिर, मसजिद तो एक दिन ढह जायेंगे। वैसे भी इनका अस्तित्व सभी नहीं मानते परन्तु अच्छे कार्यों को कोई नहीं नकारता। कोई बात नहीं तुमको भुला दिया जाये परन्तु यह तो कहा जाये अच्छा इन्सान था। डर के मत जीओ मृत्यु तो उस अवसर का अन्त है जब हमारी कुछ करने की क्षमता शेष नहीं रहती, पेड़ की तरह जो फल नहीं दे सकता छाया नहीं दे सकता, नदी जो पानी नहीं दे सकती इत्यादि-इत्यादि। मृत्यु एक अवस्था है प्रत्येक कृति की (सृष्टि की) कुछ नहीं तो कम से कम अपनी वाणी से अपने कार्यों से किसी को दुखी न करें इस बात का एहसास रहे आपको।
हमने १९४७ में आजादी पायी संविधान बनाया परन्तु हमारा प्रशासन अंग्रेजों के बनाये कानूनों पर चल रहा है जो इतने पुराने है कि उनसे अपराधों और अपराधियों पर रोक लगाना और सजा दिलाना असम्भव है।
१. कुष्ठ रोग का इलाज अब सम्भव है परन्तु इसे लाइलाज बताकर तलाक मिल सकता है। १८६९ का कानून।
२. किसानों को कर्ज मिलने का कानून १८८४ का है।
३. फैक्ट्रीज एक्ट १९४८ का है।
४. गंगा व अन्य पुलों पर चुंगी १८६७ के कानून से लगती है।
५. सरकारी भवनों पर १८९९ का कानून लगता है।
६. पुलिस को चलाने का कानून १८६१ का है।
७. होटलों और रेस्टोरेंटों पर १८६७ का कानून लगता है।
८. देश का एक कानून कहता है कि १५ वर्ष की पत्नी से सहवास अपराध नहीं है और दूसरा कानून विवाह की उम्र १८ वर्ष स्त्री के लिये और २१ वर्ष पुरुष के लिये है।
हम देश को १०० वर्ष से भी पुराने कानून पर चला रहे हैं। लगता है हमारे कानून बनाने वाले अन्धे हैं बहरे हैं और जानबूझ कर कानूनों में सुधार नहीं करना चाहते हैं। ऐसे पुराने कानूनों से उनका स्वार्थ सिद्ध हो रहा होगा।
 चीन में न्याय व्यवस्था
हमारे यहां के एक टीम ने जिसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश भी थे एक चीन में एक आरोपी के मुकदमे की प्रक्रिया३ माह में पूरी करके उसे जेल में भेज देते हैं। अन्य सभी मुकदमे भी ६ माह में तय कर दिये जाते हैं। उनकी सभी अदालतें कम्प्यूटर के नेटवर्क से जुड़ी हैं। जज के सामने सभी सूचनाएं उपलब्ध रहती हैं। सभी सूचनाएं पर्दे पर उपलब्ध रहती है जिसे वादी, जज प्रतिवादी देख सकते हैं। कम्प्यूटर पर घटना के स्थान पर पाये गये उंगलियों के निशान, हथियार एवं गवाहों के बयान भी मुकदमे के समय उपलब्ध रहती है। चीन में क्रिमिनल अपराध केवल ६७ प्रतिशत हैं अन्य मुकदमे (सिविल एवं व्यवसाय सम्बन्धी) ६८ प्रतिशत हैं। जिनको बातचीत के द्वारा तय करने की कोशिश होती है। इसके लिये एक कमेटी होती है। न्यायालय इसे मान्यता देता है और अपने आदेश में लिखता है। वर्ष में लगभग एक करोड़ मुकदमे होते हैं जिसमें १० हजार सुप्रीम कोर्ट में। बहस समाप्त होने पर एक या दो दिन में मुकदमा तय हो जाता है बहस अधिक से अधिक १० दिन चलती है। अदालत का आदेश अधिक से अधिक पांच पन्नों का होता है अन्तिम आदेश केवल एक पेज का। भ्रष्टाचार के मुकदमे (सरकारी) बहुत कम होते हैं। उनका निर्णय ३ माह में पूरा हो जाता है। भारत उनकी प्रणाली से बहुत कुछ सीख सकता है और अपनी न्याय व्यवस्था सुधार सकता है।1

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