शनिवार, 23 अप्रैल 2011

बचेंगे वही जो भ्रष्टाचार विरोधी हवा के साथ होंगे

जिस तरह से आज सारी राजनीतिक पार्टियां लोकपाल बिल की 'ड्राफ्ट कमेटी के सदस्यों की खुदाई में लगी हैं। अगर इसका शतांश भी देश की 'सीबीआई या अन्य कोई जांच एजेंसी लग जाये तो मंत्री स्तर पर काम कर रहे, कर चुके और आगे मंत्री का ख्वाब रखने वाले नेता लोग शत् - प्रतिशत जेल चले जायें।
अन्ना हजारे के आन्दोलन से और कुछ हो न हो लेकिन इतना निश्चित हो गया है कि इस देश की  राजनीति पूर्णत: भ्रष्टाचारियों के गिरफ्त में है और बेशर्म भी है। दिग्वजय सिंह, अमर सिंह, लालू, मुलायम, कांग्रेस के बातूनी रट्टू तोते (मनीष तिवारी, अभिमन्यु सिंहवी आदि... इत्यादि) और तो और राहुल, सोनिया और आडवाणी तक सब के सब खिसियायी बिल्ली, बिलौटे की तरह लोकतंत्र और संविधान का खंभा नोचने में लगे हैं। अमर सिंह तो कमाल की चीज निकले...। राजनीति के जिस गटर में हाथ डालो गुरु निकल आते हैं। ऊपर लिखे चन्द नाम बतौर नमूने के हैं... वास्तविकता यह है कि भ्रष्टाचारियों को जल्द से जल्द सजा के लिये देश का कोई भी राजनीतिक दल दृढ़ नहीं है। सोनिया ने अन्ना हजारे के समर्थन में सर्वाधिक स्पष्ट बयान जारी किया है। लेकिन यह केवल बयान है। कांग्रेस पहले दिन से आज तक कभी ऐसी पार्टी नहीं रही जिसमें रहते हुये कोई भी व्यक्ति गांधी परिवार की मर्जी के खिलाफ कोई बात कह सके। और अगर किसी ने कभी कोई ऐसी जुर्रत की तो वह फिर कांग्रेस का नहीं रहा। आरिफ मोहम्मद 'शाहबानो प्रकरण में कैसे फंसे और कांग्रेस से बाहर हुये पुराने कांग्रेसी जानते हैं। ऐसे में दिग्वजय सिंह, मनीष तिवारी मुंह दबा-दबा के जो लोकतंत्र और संविधान की मीमांशा करते हुये अन्ना और उनके सहयोगियों पर प्रहार कर रहे हैं उसे कैसे मान लिया जाये कि यह केवल अभिव्यक्ति की आजादी का मामला है। अगर लोकपाल बिल कांग्रेस के एजेंडे में है जैसा कि सोनिया गांधी ने अन्ना को लिखे जवाबी पत्र में कहा है। तो कांग्रेस को आगे आकर अन्ना के साथ ठीक वैसे ही खड़ा होना चाहिये जैसे केजरीवाल, अग्निवेश जी, शान्तिभूषण, मनीष सिसौदिया  आदि लोग खड़े हैं। दुनिया ने देख लिया कि पूरा भ्रष्ट देश भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने को तैयार है। फिर क्या देर...? आडवाणी भी अन्ना की पहल पर गन्ना लेकर दौड़ पड़े। जाने कौन सा लोकतांत्रिक कायदा-कानून बघारने लगे। भूल गये राम मन्दिर का उन्मादी आन्दोलन और बरबाद सौहार्द। भाजपा और कांग्रेस के सामने अन्ना का आन्दोलन एक खुला अवसर था। देश बचाऊ और चुनाव जिताऊ मुद्दा हथियाने का। सीना खोलकर इनमें से कोई भी दल आगे आता पूरा देश उसके साथ होता। लेकिन नहीं यह आन्दोलन जिस मांग पर टिका है उसके पूरे होने का मतलब है संसद का दो तिहाई से भी ज्यादा हिस्सा जेल जाये। फिर सत्ताभोगी नेताओं के लिये ऐसा कानून किस काम का। जिससे उनके लिये भी जेल के रास्ते खुलने की नौबत आन पड़े। तभी तो पूरी बेहयाई से छोटे-बड़े नेता, छोटे-बड़े मंचों पर अन्ना एण्ड कम्पनी को घेरने में लगे हुये हैं बिना यह सोचे-समझे कि लोकतंत्र में जनभावना का कितना मान और महत्व होता है। एक खबर पढ़ी थी एम.जे. अकबर के सम्पादन में निकले अंग्रेजी के समाचार पत्र 'एशियन एज में, खबर थी कि राम जन्मभूमि आन्दोलन के दौरान आडवाणी जी को चांदी की जो प्रतिमाएं भेंट की गयी थीं उन्हें गलवाकर उन्होंने अपनी बेटी के लिये 'क्राकरी बनवा दी थी। सोनिया आडवाणी तो पाये के राजनीतिक हैं। बाकी के बारे में क्या कहा जाये? $जरा देखिये! एक मुद्दा पूरा देश का मत लिये चौराहे पर खड़ा है और 'मतÓ के भूखे उससे न$जर नहीं मिला पा रहे हैं। मुलायम सिंह तुम बढ़कर अन्ना का दामन थामो। देखो मायावती का हाथी कैसे चरमरा कर बैठता है। लेकिन कैसेथामो...? अगर अन्ना वाला कानून बन गया तो जेल के रास्ते उनके लिये भी तो हैं। शान्तिभूषण के पीछे अमर सिंह पड़ गये हैं। उनके घपले और भ्रष्टाचार निकाले जा रहे हैं। जिस तरह से आज सारी राजनीतिक पार्टियां लोकपाल बिल की 'ड्राफ्ट कमेटी के सदस्यों की खुदाई में लगी हैं। अगर इसका शतांश भी देश की 'सीबीआई या अन्य कोई जांच एजेंसी लग जाये तो मंत्री स्तर पर काम कर रहे, कर चुके और आगे मंत्री का ख्वाब रखने वाले नेता लोग शत् - प्रतिशत जेल चले जायें। यह मानना मेरा है और कहना अरविन्द केजरीवाल का। एक तरफ  जन लोकपाल बिल का मसविदा तेजी से आगे बढ़ रहा है। दूसरी तरफ अन्ना हजारे और उनके साथियों को तरह-तरह से भ्रष्ट सिस्टम के लाभार्थी तर्क, कुतर्क और शरारतों से भोंथरा करने में लगे हैं। यह कतई उचित नहीं है। न्यायालय ने भी समिति के अस्तित्व पर सवाल उठाये हैं। पूछा है कि यह समिति कैसे जनता की  ओर से प्रमाणित समिति मानी जाये। इसके लिये बहुत ज्यादा मारा-मारी की आवश्यकता नहीं है। केवल अन्ना के धरने के पक्ष में उबले देश के मनोभाव को देख लिया जाये। अन्ना के आमरण अनशन को लोकतांत्रिक  आतंकवाद का नाम भी दिया गया इस दौरान। जी हां! यह वही आतंक है जिसने देश को गुलामी से मुक्त कराया। पुन: यही आतंक अब भ्रष्टाचार से मुक्ति  की बात कर रहा है। लोकतंत्र के पक्षधर सभी दल, बुद्धिजीवी और संविधान विशेषज्ञ केवल इतना बता दें कि जिस व्यक्ति और समिति के पीछे पूरे देश का समर्थन है उससे किस लोकतांत्रिक मर्यादा की उम्मीद की जा रही है। अरे भ्रष्टों! लोकतंत्र का मान तो तुमको रखना है? जब पूरा देश भ्रष्टाचार की मुक्ति का वाहक है तो उसके पोत को किनारे लगाओ। उसे डुबाने के षडय़ंत्र में जुटकर खुद को लोकतंत्र का 'समझदार साबित मत करो। जो  व्यक्ति बीमार होता है वही इलाज के लिये दौड़ता है। हमारा देश भ्रष्ट हो गया है अब वह उससे मुक्ति चाहता है। इस चाहना में जो बाधा बनेगा समय उसे तहस-नहस करके ही छोड़ेगा। मुझे वह वक्त तेजी से आता दिखाई दे रहा है जब मौजूदा राजनीति  के तमाम 'राजा और तमाम कौड़ा चोर, उचक्कों, हत्यारों  के साथ बाकी के दिन जेल में काटेंगे। बचेंगे वही, जो इस भ्रष्टाचार विरोधी हवा के साथ होंगे।1

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