शनिवार, 16 अप्रैल 2011

नारद डाट काम

ये तो रीति है 
 हजारे अब हजारों भी नहीं करोड़ों-अरबों बन गये हैं। उन्हें लेनी देनी से बहुत घृणा है वे इसे भ्रष्टाचार कहते हैं। उन्हें कैसे समझाया जाये कि लेनी-देनी तो रीति है। जन्म से लेकर मृत्यु तक ये पीछे लगी रहती हैं। अस्पताल चाहें सरकारी हो या गैर सरकारी लड़का पैदा होते ही लेनी-देनी ऐसे शुरू होती है जो मुंडन और शादी से होते हुये भैरोघाट तक पिछियाये रहती है। मुंशी प्रेमचन्द्र भी इसको लेकर खासे परेशान थे उनकी नमक का दरोगा कहानी तो कम से कम यही चुगली करती है। इस जरा सी बात के लिये अन्ना जी ने करोड़ों रुपये की मोमबत्तियां फुंकवा डालीं। प्रदूषण से जूझ रहे इस देश के लिये ये बड़ा झटका है।  यस यस यस करते-करते लोगों के नाखून अंगुलियों से जुदा हो गये। टीवी न्यूज वालों/वालियों के गले में खिच-खिच शुरू हो गयी वो तो भला हो स्टैप्सिल्स का जो पहले से अब आराम है कुल मिलाकर अन्ना भाई का ये लड़कपन न मुझे पसन्द आया और न ही इस देश के नेताओं को। इनके इस बचपने ने नेताओं को लाल कपड़ा दिखा दिया है। बुरी तरह से भड़के हुये हैं ताल ठोंककर कह रहे हैं चुनाव में दो-दो हाथ आजमा के दिखाओ। अब हजारे बाबू को तलाशे रास्ता नहीं दिख रहा है। दुर्योधन, दुशासन, कृपाचार्य, शकुनि और तिकोने मुंह वाले एक नेता के सामने टिकना बड़ा कठिन काम है। लगने में हजारे भाई की कोई सानी नहीं है पहले तिकोने मुंह वाले को कमेटी से बाहर का रास्ता दिखाया अब फरमा रहे हैं कि मंत्रिमण्डल से फूट जाओ। बात सोचने की है कि अगर ये नेता मान लो चला ही गया तो देश की कृषि का क्या होगा? जाहिर है सूख जायेगी, दालें रांण बन जायेंगी दो  टके में भी कोई नहीं पूंछेगा मुंह और मंसूर की दूरी पूरी तरह घट जायेगी, चीनी अपनी किस्मत पर रोयेगी। अब आप लोग ही बताइये कि हजारे जी की ये बातें कहां तक उचित हैं?  अब तो अडवाणी जी भी मूंछे फडफ़ड़ाने लगे हैं उन्हें लोकतंत्र के मिटने का खतरा दिख रहा है। बस हजारे भाई एक बार बुढ़ौती में प्रधानमंत्री बन लेने दो बाद में क्रान्ति करना। बेचारे करें भी क्या सारे बाल सफेद कर लिये लेकिन हल्दी नहीं लगी तो नहीं ही लगी। अब ये नई बाधा सामने आ गयी है। अन्ना भाई संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ नहीं हैं चूकि इसी में हमारी भलाई है तुम्हारा साथ देने में भूखे रखने के सिवा और क्या मिलना है?
बात पते की
अगर हम ठीक हैं तो हमें क्रोध करने की क्या दरकार? और यदि हम गलत हैं तो हमें क्रोधित होने का अधिकार ही कहां है?1

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