शनिवार, 30 अप्रैल 2011

कवर स्टोरी

व्यवस्था पर मसाले की पीक
मुख्य संवाददाता 
 
अफसरशाही आम नागरिकों से तो उम्मीद करती है कि सभी लोग कानून का पालन करें और न्यायालयों के आदेशों को मानें पर क्या अफसरशाही खुद ऐसा करती है? शायद नहीं। शहर में आजकल खुले आम न्यायालय के आदेशों की वह भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की जा रही है। पर पूरी की पूरी अफसरशाहों की फौज मौन है। सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

सरकार का दावा है हर जगह कानून का राज है। सारी व्यवस्थाएं ठीक हैं। संवैधानिक कानूनों का पालन हो रहा है। न्यायालय सरकार की इस थोथी बयानबाजी से असहमत है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या न्यायालय की यह असहमत सोच गलत है तो इसका जवाब है बिल्कुल नहीं। दरअसल न्यायालय का तमाम सरकारी दावों पर असहमत होना बिल्कुल सही है जायज है। हालांकि इस असहमति के विचार की जनक पूरी तरह से सरकार नहीं बल्कि काफी हद तक सरकारी मशीनरी है। अफसरशाही आम नागरिकों से तो उम्मीद करती है कि सभी लोग कानून का पालन करें और न्यायालयों के आदेशों को मानें पर क्या अफसरशाही खुद ऐसा कर रही है? शायद नहीं। शहर में आजकल खुले आम न्यायालय के आदेशों की वह भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर पान मसाला बिक रहा है। पर पूरी की पूरी अफसरशाहों की फौज मौन है। सब हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। १७ फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जी.एस. सिंघवी और ए.के. गांगुली की पीठ ने पान-मसाला गुटखा के प्लास्टिक पाउचों के सम्बन्ध में एक आदेश जारी किया। इस आदेश के  तहत एक मार्च से पूरे देश में पान-मसाला के पाउचों की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। इस प्रतिबन्ध को लागू करने की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की थी। आदेश में स्पष्ट था कि बिक्री पर प्रतिबन्ध केवल प्लास्टिक पाउचों पर है। भविष्य में मसाला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से स्वीकृति वैकल्पिक पाउचों में ही बेचा जा सकेगा। इस प्रतिबन्धात्मक आदेश के बाद भी शहर में चोरी छिपे प्लास्टिक पाउचों में मसाला की बिक्री जारी रही। उस दौरान कुछ पान-मसाला निर्माताओं ने दफ्ती की डिब्बी में मसाला बेचना शुरू भी किया लेकिन प्रशासन ने उसे भी नहीं बिकने दिया। प्रतिबन्ध लगने के पन्द्रह दिन बाद ही तमाम कम्पनियों ने एल्यूमिनियम लेयर वाले कागजी पाउचों में पान-मसाला पैक कर बेचना शुरू कर दिया। शुरुआत में तो ये पाउच लुका-छिपा कर बेचे गये लेकिन पिछले करीब एक महीने से इन कागजी पाउचों में पान-मसाला खुले आम बिक रहा है। वह भी खुदरा मूल्य से ज्यादा कीमत पर। यानी कि एक साथ दोहरे कानूनों का उल्लंघन हो रहा है। पहला है सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का और दूसरा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का। लेकिन जिले का हर प्रशासनिक अधिकारी एक ही बात कह रहा है कि न तो मसाला बिक्री पर प्रतिबन्ध हटाने का कोई नया अदालती आदेश ही मिला है और न ही मसाला बेचे जाने के बारे में कोई जानकारी ही है।
ये वाकई कमाल की बात है कि जिस शहर में के अधिकांश सरकारी दफ्तरों के भवन पान-मसाले की पीक से रंगे पड़े हों उन्हीं दफ्तरों में जाकर अपना काम करने वाले अधिकारी इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। दरअसल अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों को यह पता है कि शहर में पान-मसाला बेचा जा रहा है वह भी बिना स्वीकृति पाउचों में। पर मामला सर्वोच्च न्यायालय से जुड़ा है इसलिये हर अधिकारी इस बारे में अनभिज्ञता जता कर बस अपना पल्ला झाडऩे की फिराक में है बस। कुछ भी प्रशासनिक अधिकारी इस मामले में कुछ भी तर्क दें पर यह भी सच है कि इस तरह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को न मानने का अपराध तो हो ही रहा है और इसके लिये पाउच बनाने वाले मसाला निर्माता, बेचने वाले दुकानदार, खरीदने वाले उपभोक्ता और सब कुछ देख कर अनदेखा करने वाले शहर के प्रशासनिक अधिकारी सभी दोषी हैं।1

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