शनिवार, 2 अप्रैल 2011

मार्शल का बाईस्कोप

गरीबी और अमीरी का कन्फ्यूजन

अनुराग अवस्थी 'मार्शल'
भारत ने पाक पर जीत क्या दर्ज की, सारा देश जैसे जवान हो गया। मूंगफली बेचने वाले से लेकर सोनिया, मनमोहन तक सब धोनी-आफरीदी के मुकाबले पर आंखे गड़ाये थे। दुनिया के अरब पतियों की सूची में एक दर्जन भारतीयों के शामिल होने के बावजूद चकटों ने एक चाकलेट तक ईनाम में देने का एलान नहीं किया था। उधर पाकिस्तानियों को देखो, २५-२५ एकड़ जमीन देने का वायदा तो वहां के गवर्नर ने कर रखा था।
इसके अतिरिक्त मैच फिक्स करने पर जान-माल की धमकी भी थी। जो भी वीआईपी मोहाली पहुंचे थे, उनमें से  क्रिकेट से कितनों को प्यार था, देश पर कौन न्योछावर होना चाहता है, इसका थर्मामीटर तो नहीं है। लेकिन सारे देश के टीवी पर आंकें गड़ा देने के बाद स्टेडियम के सहारे लोगों के दिलों में उतर जाने का क्रेज जरूर था।
विजय माल्या से अनिल अम्बानी तक और आमिर से सुनील सेट्टी तक सोनिया से मीरा कुमार तक सब मोहाली में थे। लेकिन कंगलों की तरह। वैसे सचिन और धोनी के पास बहुत कुछ है। क्रिकेट ने उन्हें रुपया, पैसा, नाम, शोहरत, स्टेट्स सब कुछ दिया है। देश के करोड़ों लोगों की भावनायें और आशीर्वाद उनके साथ रहता है। लेकिन हाकी, फुटबाल बहुत से खेल ऐसे हैं कि अगर इनमें से कोई माल्या अपनी एक बोतल का एक ढक्कन खोल दे तो इन खेलों की दशा और दिशा ठीक हो जाये।
हम हिन्दुस्तानी जानते हैं तीन असली मित्र होते हैं-बूढ़ी पत्नी, पुराना कुत्ता और टेंट का पैसा। जवानी में पत्नी को शोपीस और बाकी जहां मौका लग जाये। हमारे एक डाक्टर मित्र ने तो पत्रियां भी कई कर ली हैं ताकि बुढ़ापे में भी एकरसता के नीरज रस के बजाय काकटेल सा मजा मिलता रहे।
इसलिये दानराज कर्ण के देशवासी हम अब कमाओ जोड़ो और इक_ा करो कि पालिसी पर चल रहे हैं। माया-मुलायम तो समझ में आता है। उन्हें पार्टी बननी पड़ती है। इन सब कामों में पैसा लगता है। इसीलिये बेचारे सीबीआई की भी झेल रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट की भी। लेकिन अब हसनअली और बलवा को इतने पैसे का क्या करना था। भगवान न करे यह पैसा भी पावर में बैठे पवारों का निकले।
'सार्इं इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।Ó कबीरदास ने कही थी दो रोटी की भूख के लिये। वक्त बदला, भूख बदली, मीनू बदला, खाने वाला पार्टनर बदला, होटल की टेबिल बदली, बस उसी का नतीजा है कि छत्तीस हजार करोड़ और एक लाख छियत्तर हजार करोड़ रुपये अन्दर हैं लेकिन भूख है कि खत्म ही नहीं हो रही है।
ईट ट्रिंक और बी मैरी पर चलने वाले, बफे और क्लिंटन ट्रस्ट बनाकर करोड़ों डालर सामाजिक कामों में लगाते घूम रहे हैं। कोई खत्म करने के लिये पैसा खर्च कर रहा है तो कोई शिक्षा के लिये।
एक हम हैं जो साफ पानी के लिये सरकार ती तरफ ताक रहे हैं या एनजीओ बनाकर माल साफ कर रहे हैं। ६५ साल होने जा रहे हैं साफ पानी हर आदमी को नहीं मिल पा रहा है, साफ हवा का पता नहीं है। इनमें फैलने वाली बीमारियों को ठीक करने के लिये हम विदेशों में प्रतिबन्धित दवाओं को भी हजम कर जाते हैं, ऐसा शानदार है हमारा हाजमा।
रोटी-कपड़ा और मकान के बजाय फिलहाल हम हवा-पानी ही ठीक कर लें तो ठीक रहेगा। सामान्य प्रदूषण हो या रेडियोएक्टिव संक्रमण हम जहाजों में कूड़ा भरकर बंबई, चेन्नई में उतार रहे हैं।
अवैध घुसपैठियों को देखकर मुझे लगता है भारत एक भारतीय धर्मशाला है, जहां आकर किसी को भी ठहरने, खाने-पीने, गोपनीय स्थल में झांकने, अच्छा लग जाने पर यहीं बस जाने और जब चाहे चले जाने की खुली मौज है।
कभी मुझे ऐसा लगता है कि भारत एक बड़ा कूड़ादान है जहां चीन अपने कैंसर फैलाने वाले खिलैने, अमेरिका, इग्लैंड अपना बचा कूड़ा जहाजों से फेंक सकते हैं।
कभी ऐसा दिखता है भारत लोहे, हीरे, ग्रेनाइट की खानों की एक खान है, जहां विदेशी कम्पनियों को खुले आम खुदाई की छूट है।
कभी ऐसा लगता है भारत भ्रष्टाचार का जिन कांवेट पार्क है। जहां शेर, चीता, हाथी की तरह खादी पहनकर खुलेआम लूटने और चिंघाडऩे की नेताओं को छूट है।
भारत एक प्रयोगशाला है जहां इन्सानों पर रिसर्च और निर्माण के लिये दवाओं का प्रयोग किया जाता है।
भारत एक महासर्कस है जहां मोका मिलते ही कोई जमूरा मूर्तियां लगाने लगता है, कोई चावल बांटने लगता है, तो कोई फ्रिज टीवी की बात करता है।
अपने सहारा श्री को छोड़ दिया जाये तो शायद बाकी धनकुबेरों ने वो तकनीकि इजाद कर ली है, जिससे शायद वो बन्द मु_ी में ऊपर जा सकेंगे।
नीचे तक यह बीमारी महामारी बन गयी है। पैसा निकलेगा तो प्रवचन, भागवत, उर्स, तकरीर के नाम पर । खेल के मैदान, पुस्तकालय, वाचनालय, धर्माथ चिकित्सालय, बृद्धाश्रम, गरीबों के स्कूल नि:शुल्क कोचिंग के लिये किसी गली कूचे के सेठ से लेकर दिल्ली बम्बई के धनकुबेर के पास पैसा और समय नहीं है। क्योंकि धर्म-कर्म के नाम पर आम आदमी भी जल्दी पैसा लुटाता है इसलिये धर्मधारण करने के बजाय माल पैदा करने का साधन बन गया है। नाम की भूख और माइक उन्हें समाज के लिये समर्पित होने के बजाय टीवी कैमरे के प्रति समर्पित कर देता है।
५ अप्रैल
हम ३६४ दिन तो खाते हैं। एक दिन का व्रत रख लीजिये, ५ अप्रैल का। अन्ना के साथ हजारों नहीं करोड़ों लोग हैं। आप भी हो जाइये। भ्रष्टाचार की भूख ऊपर से शुरू होती है फिर नीचे आती है। यह खत्म नीचे से होगी। एक दिन भूखे रहकर। वरना ये नेता पूरा देश खा लेंगे।1

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