शनिवार, 16 अप्रैल 2011

मार्शल का बाईस्कोप

भ्रष्टाचार: व्यवहार से बना खरपतवार

अन्ना साड़ से घूम रहे हैं देश में भ्रष्टाचारी। भ्रष्टाचार पहले व्यवहार हुआ, फिर जबरार हुआ, फिर शिष्टाचार हुआ। पहले सरकारी आदमी घूस चुपके से लेता था, आम आदमी उसे व्यवहार के नाम पर कुछ दे देता था। व्यवहार का कोई रेट नहीं होता है। हम शादी बारात में रुपये से आगे... चाहे जो कुछ दे दें। फिर रेट तय हुआ और ये नजराना से जबराना हो गया। उतना ही देना पड़ेगा। अब ये शिष्टाचार में बदल गया है। मतलब जैसे मिलने पर जय राम जी की, जय भीम, पांव लागी होता है वैसे ही घूस, पैसा तो देना ही देना है। मुझे लगता है भ्रष्टाचार अब खरपतवार बन गया है। शिष्टाचार चाहो तो न करो, लेकिन खेत-खलिहान में खरपतवार तो उग ही  जाता है। अब खरपतवार काटे बगैर कुछ नहीं होगा।
अब व्यवहार से शुरू हुये खरपतवार बन चुके इस भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये अपने अन्ना भाई आ चुके हैं। सारा देश उनके साथ उपवास, कैण्डल मार्च में शामिल है। मेरे एक मित्र हैं व्यूरोक्रेसी में ऊपर तक पहुंच रखने वाले छोटे अफसर। कहते हैं जब सब मार्च निकाल रहे हैं तो भ्रष्ट कौन है? भ्रष्ट तो हम सब हो चुके हैं, बताइये क्या बगैर हेलमेट लगाये और गाड़ी के सभी कागज लिये बगैर चलना, पुलिस के द्वारा रोकने पर मैं प्रेस/नेता... का हवाला देकर निकलना या फिर पचास का नोट देकर बचना क्या है? स्टेशन पर लगी लाइन में जुगाड़ से टिकट लेने का प्रयास करना क्या है? शहर में आये सर्कस/जातू/म्यूजिकल नाइट/मैच में सक्षम होते हुये भी फ्री पास झटकना क्या है?
मैं फिर कह रहा हूं भ्रष्टाचार शुरू ऊपर से होता है खत्म नीचे से होगा। अन्ना के साथ अनशन पर बैठने से ही नहीं, अन्ना की तरह अपने जीवन को पाक-साफ बनाकर। घूस लेंगे नहीं। घूस देंगे नहीं। अपना काम ईमानदारी से करेंगे, नियम से चलेंगे, न कानून तोड़ेंगे न खींसे निपोरनी पड़ेंगी।
बाबा साहब अमर रहें
बाबा साहब को श्रद्धांजलि समर्पित हो गयी। गांधी जयंती, रामनवमी, अम्बेडकर जयंती सब या तो एक दिन की छुट्टी का नाम है या वोट बढ़ाऊ अभियान का दूसरा नाम। डा. अम्बेडकर ने हमें वो संविधान दिया, जो हमें स्वाभिमान और सम्मान के साथ जीने की राह सिखाता है। कुछ लोगों ने अम्बेडकर की अवहेलना की और कुछ ने इसे हाईजैक कर लिया। आरक्षण को लेकर आज लोग आमने-सामने हो रहे हैं। क्या सरकारी नौकरियां इतनी हैं कि सबको मिल जायें तो फिर जो एक बार आरक्षण का लाभ पा गया उसको दुबारा क्यों? क्या एक युवा आईएएस, पीसीएस या बैंक में आने के बाद भी दलित या पिछड़ा बना रहता है तो फिर घुरहू मोची का नम्बर कब आयेगा। प्रोन्नति में आरक्षण का क्या काम? कार्यदक्षता, ईमानदारी और अनुभव के बल पर ही प्रोन्नति होनी चाहिये, लेकिन नहीं देश और समाज से बड़ा है अपना वोट बैंक। इस मामले में सभी नेता लगभग एक ही हैं...। किससे क्या उम्मीद करेंगे।
सपा-बसपा आगे, भाजपा कांग्रेस पीछे
उत्तर प्रदेश चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। सब कुछ ठीक रहा तो जुलाई में पालिकाओं के चुनाव और दिसम्बर जनवरी में विधानसभा के। बसपा की तैयारी लगभग पूरी है। प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। कार्यकर्ताओं के सम्मेलन और बैठकें होती रहती हैं। कैडर और बूथ लेबिल पर भर्ती, पदाधिकारी, लिस्ट रजिस्टर चला ही करता है। अनुसूचित सीटों के प्रभारी नौशाद अली मुस्लिमों को एकजुट करते घूम रहे हैं। खुद प्रत्याशियों और विधायकों ने बूथ इन्चार्ज बनाने शुरू कर दिये हैं। समाजवादी पार्टी ने भी पहले लिस्ट निकाल दी है।
भाजपा-कांग्रेस अभी सो रही है। कांग्रेस तो फिर भी पर्यवेक्षक घुमाकर बायोडाटा इक_ा कर रही है, इसी बहाने कुछ गर्मी बनाये है। भाजपाई परेशान हैं कि टिकट कब घोषित होंगे? कौन फाइनल करेगा? गडकरी, अडवाणी या जेटली? गडकरी के गुप्तचरों की टीम घूम रही है। शाही जी टिकट देंगे तो क्या होगा, वे तो प्रेमलता के चश्मे से देखते हैं। पार्टी समरसता दिवस मना रही है और हालत यह है कि पूरी पार्टी अपने दोनों अध्यक्षों के खिलाफ खड़ी है। श्याम बिहारी, द्रोण, पचौरी, पाटनी, गोपाल अवस्थी, बालचन्द्र, रामदेव...। पार्टी के बड़े नेता कलराज आये थे और कार्यक्रम की सूचना आधे नेताओं को नहीं दी गई। बड़ी पार्टी ज्यादा काम, कार्यकर्ता का कामतमाम। भाजपा संगठनात्मक कामों का एजेंडा और रूपरेखा ऐसा बनाती है जैसे नीचे वाले सब ठलुआ हैं या पार्टी से वेतन भोगी। आज मशाल जुलूस, कल हनुमान चालीसा पाठ,  परसों स्थापना दिवस, नरसों पदयात्रा, फिर चार दिन तक यात्रायें चलेंगी...। कार्यकर्ता कह रहा है प्रत्याशी कौन पार्टी कर रहे है व्यक्ति नहीं संगठन को मानिये।
भाजपा कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टियां हैं राष्ट्र पहले है, पार्टी हित बाद में। अभी इन्हें अन्ना, राडिया, पवार, रामदेव के चक्रव्यूह से बाहर आने में समय लगेगा। अक्टूबर में टिकट होंगे तब प्रत्याशी गाल फुलाये लोगों को मनायेंगे या प्रचार करेंगे। अपने गप्पू भइया ने तो कह दिया है पार्टी अक्टूबर में अगर टिकट देगी भी तो नहीं लड़ेंगे।
और आखिरी बात
पिपराइच में विधानसभा का उपचुनाव और विषधन में ग्राम सभा का उपचुनाव। जाति, धर्म, पैसा, दबाव, जोड़तोड़ दलीय समझौते सभी कुछ आइने के तरह साफ हैं। अन्दाजा लगा लीजिये कि कैसे होंगे अगले कुछ महीनों में होने वाले पालिका चुनाव और फिर विधानसभा के चुनाव।1


अनुराग अवस्थी 'मार्शल

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