रविवार, 10 अप्रैल 2011

मार्शल का बाईस्कोप

हम नहीं सुधरेंगे...

गुजराती, मराठी, उत्तर भारतीय..... पर हिन्दुस्तानी नहीं।
उतारो चश्मा, कभी तो भारतीय बनो।
धोनी के छक्के से भारतीय टीम के विश्वकप जीतते ही सारा देश भारतीय रंग में रंग गया। गंावो में खेतों से कस्बो नगरों की गलियों से दिल्ली मुम्बई जैसे महानगरों तक उल्लास, हर्ष, गौरव से जति, धर्म, आयु, गरीब अमीर, मजदूर, मालिक की सभी दीवारों टूट गयी। महिला हो या पुरूष, बच्चे हों या बूढ़े सभी क्रिकेट में भारत के विश्व विजेता बनने पर इतने खुश थे जैसे उनकी अपनी एक करोड़ की लाटरी खुल गयी। सारा देश टीम इन्डिया की कर रहा था। सचिन ० पर आउट हुए थे, फिर भी उनकी चर्चा थी, गम्भीर का शतक नहीं बन पाया इसका अफसोस था। धोनी पूरे टूर्नामेंट में नहीं चल पाये थे, लेकिन फाइन मे कप्तानी का हक अदा कर दिया था इसका सन्तोष था। जातिवाद का जहर और हिन्दू मुस्लिम की खाई कुछ छणों कई दिनों तक पट चुकी थी।
टेलीविजन सेट पर युवराज और भज्जी के आंसू देखकर केवल पजांब की आंखे नहीं सारे भारत की आंखे नम हो गयी थी। खुशी से।
हर भारतीय जब जाति प्रान्त और धर्म की दीवारें तोड़ कर हिन्दुस्तानी बन गया।
तो ऐसा लगा कि अगर देश प्रेम से ओतप्रोत एक  सौ इक्कीस करोड़ की इस  आबादी को रचनात्मक दिश दे दी जाये तो देश में असम्भव कुछ भी नहीं रह जायेगा। दूसरी तरफ भारत का मस्तक हिमालय की तरह ऊँचा हो जाने पर भी नेता अपनी सोंच से ऊपर नहीं उठ सके। हर मुख्यमंत्री अपनी प्रान्तीय दीवारों में कैद रहा। शीला दीक्षित को विराट कोहली और दिखे। नरेन्द्र मोदी को गुजराती युसुफ पठान और मुनाफ पटेल। बहन जी को सुरेश रैना और ..........। महाराष्ट्रीय चाहवाण को सचिन....। झारखण्ड के रमन सिंह को धोनी उत्तराखण्ड के निशंक को ......। पंजाबी बादल को भज्जी...........।
अपनी सनक को ड्रीम प्रोजेक्ट का नाम देकर अरबों रूपये बरबाद करने वाले कंगालों के पास अगर एक तो भी हर खिलाड़ी को बराबर बराबर बांट जाता लेकिन और उतना ही रुपया मिलता जितना आज मिला लेकिन तब शायद गुजराती, पंजाबी, मराठी,... के खेल से बाहर निकलकर हर खिलाड़ी और ज्यादा गौरववित होता। सोंच के इस घटिया स्तर पर हर राजनैतिक नेता बराबर निकला चाहें वह राष्ट्रवाद की बात करने वाले भाजपाई मोदी है, सर्वजन का मुलम्मा चढ़ाये मायावती, कांग्रेस को भारत का पर्याय मानने वाली शीला या बाकी और मुख्यमंत्री। शर्म है इनकी सोच और समझ पर सारे भारत को हम सबको।
अनुराग अवस्थी 'मार्शल'

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