शनिवार, 23 अप्रैल 2011

कवर स्टोरी

प्रेस क्लबऔर अन्ना इफेक्ट


कहने को तो प्रेस क्लब का अपना एक संविधान है। लेकिन हकीकत यह है कि पूरे के पूरे प्रेस क्लब का इस संविधान से  कोई लेना-देना नहीं है। हर साल प्रेस कांफ्रेंस शुल्क के जरिये  लाखों की कमाई होती है। लेकिन न तो इस कमाई का और न ही किये जाने वाले खर्चों का कोई हिसाब प्रेस क्लब के पास है। और तो और प्रेस क्लब का कोई बैंक एकाउंट ही आज तक खोला गया है। कुल मिलाकर खाता न बही जो कही वो सही की तर्ज पर सारा खेल चल रहा है।

इसे कहते हैं असली अन्ना इफेक्ट जिस इफेक्ट की वजह से कानपुर प्रेस क्लब की निवर्तमान हठीली कमेटी की चूलें तक हिल गयीं और उसे आखिरकार प्रेस क्लब चुनाव की घोषणा करनी ही पड़ी भले खिसियाकर ही सही, और करते  भी क्योंनहीं आखिर उस समय प्रेस क्लब का माहौल भी तो शोले फिल्म जैसा ही हो गया था जब जय और वीरू सूरमा भोपाली के पास जाते हैं और कहते हैं बाकी तो सब ठीक है पर मुँह से ना न निकले और न निकलने पर सूरमा भोपाली की क्या गति होती है यह फिल्म देखने वाले सब लोग बाखूबी जानते ही हैं, बस फिल्म और प्रेस क्लब की हकीकत में मंगलवार के दिन फर्क यह था कि यहाँ जय वीरू भी दो नहीं कई थे और सूरमा भोपालियों का तो पूरा संगठन ही था दो को छोड़ कर तो ऐसे में चुनाव कराने के लिये न कहने का प्रश्न ही नहीं उठता था। अच्छा ही हुआ जो उठा भी नहीं वरना इन नये दिलजले-सिरचढ़े जय वीरूओं का भरोसा भी क्या न जाने सूरमा भोपालियों को क्या-क्या डॉयलाग सुनाते। खैर प्रेस क्लब में जो हुआ शालीनता की सीमा के भीतर ही हुआ जैसा कि पत्रकारिता जैसेपढ़े लिखे पेशे में होना चाहिए। यूं तो प्रेस क्लब के चुनाव को लेकर पिछले काफी समय से खबरनवीसों की जमात में अन्दर चूँ-चपड़ मची ही हुई थी, बस चूँ-चपड़ ही ज्यादा कुछ नहीं। कई बार प्रेस क्लब का चुनाव कराने की बात भी आई लेकिन उसमें होता यह रहा कि जब यह बात अध्यक्ष अनूप बाजपेयी और महामंत्री कुमार से बड़े उम्रदराज लोगों ने उठाई तो उन्हें यह कह कर कि बताओ भाई जी आप भी हमारे खिलाफ, अरे हम तो आप के ही छोटे भाई हैं कह कर मना लिया गया और जब यही बात छोटों ने कही तो उन्हें उनकी औकात बताई गयी। कुल मिलाकर हर बार चुनाव कराने की माँग पर नया पैतरा बदला गया पूरी की पूरी प्रेस क्लब समिति विशेष रूप  से अध्यक्ष और महामन्त्री चुनाव कराने के नाम पर कन्नी ही काटते रहे।
दरअसल प्रेस क्लब चुनाव कराने के लिए इस नये सफल संघर्ष की शुरुआत भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के समर्थन में 'चौथा कोना (जो कि हेलो कानपुर का साफ-साफ दो टूक बात कहने वाला नियमित स्तम्भ है) के नवीन मार्केट में दिये गये धरने के साथ ही हो गयी थी। यह धरना प्रमोद तिवारी की अगुवाई में शहर के तमाम ईमानदार पत्रकारों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के समर्थन में दिया था। इसी धरने के दौरान कुछ युवा पत्रकारों ने एक ऐसा प्रश्न उठा दिया जिसका जवाब देना प्रमोद तिवारी और उनके सहयोगियों के लिये बेहद जरूरी हो गया था।
यह प्रश्न कुछ इस तरह था- 'भइया भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का समर्थन तो कर रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार तो प्रेस क्लब में ही हो रहा है। वर्षों से चुनाव नहीं कराये गये हैं। आने वाले पैसों और होने वाले खर्च का कोई हिसाब किताब  नहीं है न कोई कुछ सुनने वाला है न कोई कुछ बताने वाला है। बताइये इसके लिये कौन लड़ेगा?
वास्तव में यह वह जरूरी प्रश्न था जिसका जवाब देना इस धरने में शामिल उन सभी ईमानदार पत्रकारों के लिये उतना ही जरूरी था जितना कि खाना और पीना। इसलिये इस धरने में ही इस प्रश्न का जवाब देते हुये इस भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रेस क्लब की वर्तमान कमेटी को भंग कर चुनाव कराये जाने का अभियान छेड़ दिया गया।
अब इसके बाद चौथा कोना के धरने में पूछे गये सवाल का जवाब देने की बागडोर प्रेस क्लब मुक्ति मोर्चा बनाकर आदित्य द्विवेदी, सौरभ शुक्ल, सरस बाजपेई सहित कई युवा पत्रकारों के हाथों में दी गयी। इसके बाद कई मर्तबा प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनूप बाजपेयी और महामंत्री कुमार को प्रेस क्लब की आम बैठक बुलाकर चुनाव कराने के लिये कहा गया लेकिन किसी के कानों में जूं नहीं रेंगी प्रेस क्लब कमेटी के सारे मेम्बरान युवा पत्रकारों की इस जायज मांग को अनसुना ही करते रहे। युवा पत्रकारों ने बदलाव के लिये अपने पहले अस्त्र के रूप में एसएमएस  अभियान छेड़ कर  पूरे शहर के पत्रकारों को बदलाव के मैसेज भेजे गये। इस दरम्यान मुक्ति मोर्चा के अगुआकार सौरभ शुक्ल ने महामंत्री कुमार से कई बार बिना तनाव के ही चुनाव कराने को कहा लेकिन हर बार महामंत्री ने उन्हें चुनौती पूर्ण ठंग से ललकारा और कहा च्च्उखाड़ लो....जो उखाडऩा होज्ज्। अंतत: प्रेस क्लब मुक्ति मोर्चा ने १७ अप्रैल को शहर के सभी पत्रकारों सहित प्रेस क्लब को भी चुनाव के सवाल पर नगर निगम में वार्ता के लिये आमंत्रित किया बुलाया। इस आमंत्रण पर पूरे शहर के करीबडेढ़ सैकड़ा पत्रकार आये लेकिन प्रेस क्लब समिति की तरफ से केवल सरस बाजपेयी, इरफान और विनय गुप्ता ही मौजूद रहे। मालूम हो कि सरस बाजपेई बदलाव के पक्ष में चल रही मुहिम के भी पक्षधर हैं और प्रेस क्लब के वरिष्ठ मंत्री भी हैं। बाकी सारे पदाधिकारी कन्नी काट गये। प्रेस क्लब मुक्ति मोर्चा की आयोजित यह काल वाकई काफी हंगामादार रही। प्रेस क्लब कमेटी की मनमानी का जमकर विरोध हुआ। जबकि इस बैठक में गैर हाजिर प्रेस क्लब की अवैध हो चुकी समिति के अवैध पदाधिकारी प्रेस क्लब मुक्ति मोर्चा की इस सार्थक बैठक को अवैध तरीके सेअवैध बताकर अपनी खिसियाहट मिटाते रहे। बहाना था कि अगर मीटिंग प्रेस क्लब में होती तो आते नगर निगम में नहीं आयेंगे।
परिवर्तन के हामी पत्रकारों का यह कदम ९ साल से जमी प्रेस क्लब पर काफी भारी पड़ गया। उन्हें भनक लग गई कि इस बार न धमकी चलेगी न प्रार्थना। दरअसल युवा शक्ति ने एक गम्भीर निश्चय कर लिया था जिसकी भनक प्रेस क्लब के रूढ़ी पदाधिकारियों को लग गयी थी। यह निर्णय था 'आमरण अनशनÓ का। सौरभ शुक्ला आमरण अनशन की अनौपचारिक घोषणा कर चुके थे। जैसे-जैसे नगर निगम पत्रकारों का जमाव बढ़ता गया पुरानी कमेटी के पांव उखड़ते गये। अभी बैठक पूरी तरह से शुरू भी हो पाती कि महामंत्री कुमार ने फोन के जरिये एक दिन बाद यानी कि १९ अप्रैल को आम सभा की बैठक करके चुनाव घोषित करने का वायदा कर दिया। इस वादे के साथ यह बैठक स्थगित कर दी गयी। सारे शहर के पत्रकारों के मोबाइल मुक्ति मोर्चा के विजय अभियान के सन्देश से भर गये। जय-जय करते हुये १९ अप्रैल की आम सभा का इन्तजार शुरू हो गया। लेकिन बात यहीं नहीं थमी। प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने आम सभा में पहले १७ अप्रैल को अपनी कार्य समिति की बैठक बुला ली और बैठक में ही १ जुलाई को चुनाव घोषित कर दिया और चुनाव कराने के विधि विधान के बारे में जिम्मेदारियों भी सौंप दी। प्रेस क्लब कार्य समिति की बैठक में प्रेस क्लब कमेटी के चुनाव कराने के लिये हामी भर दी। तय हुआ कि कमेटी भंग कर शहर के सभी अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक चैनलों से एक-एक पत्रकार को लेकर २३ अप्रैल तक एक ग्यारह सदस्यीय कार्यकारी कमेटी बनाई जायेगी। हर संस्थान के संपादकों से मिलकर ग्यारह सदस्यीय कमेटी बनाने की जिम्मेदारी दो पत्रकारों महेश शर्मा और राजेश नाथ अग्रवाल को सौंपी गयी है।

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